एक प्रश्न.....
धर्म क्या है क्यों है अक्सर हम यह सवाल खुद से करते हैं और इससे जुड़ी शब्दावली जानने का प्रयास भी करते हैं लेकिन हम इस बात को भी मानने से इंकार करते हैं कि हमारे जीवन जीने की प्रक्रिया ही धर्म है। लेकिन जब कोई हमारे जीवन जीने की प्रक्रिया पर सवाल उठाता है और उसे हीन दृष्टि से देखता है और हमारे दिलो दिमाग में यह बात बैठने का प्रयास करता है की हमारे जीवन जीने की प्रक्रिया कितनी गलत है और हमारा धर्म मनुष्य की उलझने सुलझाने की जगह उसमे हमे और उलझाने का प्रयास करता है इसलिए हमे यह छोड़ देना चाहिए और जब यही प्रक्रिया लगातार चलती रहती है या जबरदस्ती का कार्य इसमें शुरू हो जाता हैं तब यही प्रक्रिया धर्मांतरण का रूप ले लेती है। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा ने धर्मांतरण की प्रक्रिया को वैध घोषित किया है अर्थात धर्मांतरण विरोधी कानून को अवैध बताया गया है।इसका अर्थ है जिस तरह हर गली मोहल्ले में किराने की दुकान देखने को मिलती है ठीक उसी तरह अब धर्मांतरण की दुकानें भी खुलने लगेंगी। वर्तमान सरकार के इस कदम के पीछे एक बड़ी वजह पिछली सरकार से मतभेद होना और राजनीति की दुनिया में यह खेल तो सदियों से चला आ रहा है कि यदि एक सरकार सत्ता में आने पर कुछ नीतियां लाएगी तो वही पुरानी सरकार की नीतियों को या तो बंद कर देगी या उन्हें पूरी तरह बदल देगी फिर वो चाहे कोई भी क्यों न हो। तभी तो राजनीति को गंदी कीचड़ का ऐसा दलदल कहा गया है जहां कमल खिले न खिले पर हर किसी के चरित्र में परिवर्तन जरूर आ जाता हैं।जहा एक दूसरे के विरोध में जनता को जनता की समस्या और उनकी जरूरतों को भुलाया जाता हैं। धर्मांतरण पर रोक लगाने से या अपने अपने धर्म को मानने से सरकार को जब तक कोई आपत्ति नहीं हो सकती तब तक कि वो देश की सौहार्द और सहिष्णुता के विरोधी न हो - ऐसा मैं नहीं हमारे देश का संविधान कहता है वो संविधान जिसके बलबूते यह देश खड़ा है वो संविधान जिसकी आज्ञा से ही राजनीति का रथ आगे बढ़ता है लेकिन आज वही रथ अपने उद्देश्यों और कर्तव्यों से डगमगा रहा है। इन सभी के बीच एक प्रश्न यह उठता है कि क्या कर्नाटक सरकार कर्नाटक राज्य को भी केरला स्टोरी की तरह धर्मांतरण और आईएसआईएस का एक अड्डा बनाना चाहती है जहां देश के युवा देश के लिए नही बल्कि धर्म के नाम पर जेहाद के लिए आतुर रहे?????
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